किनारे पे बैठ जब दूर तक निहारा
तो नजर आया ये अद्भुत नजारा
समा ही न पाया एक नजर में सारा
सृष्टि जो है ,एक दृष्टीमें कब समाई
ईश्वर की देन मुझे बस युं समझ आई।
मन्ना
चांद की कश्ती
कजरारे समंदर में चांद की कश्ती चली
दुधिया पतवार थामें चांदनी भी चल पड़ी
काजल की लेहरों पर सदियों का हुआ सफर
तय न हुआ फासला दोनों ही दर बदर।
मन्ना
जिवन
जिवन छोड़ किनारे पे सिमटी
कुछ स्मृतियों सी सिपीयां
मोती आभा बिखरते थे कभी इनके अंदर
जगमग ,हलचल छुट गई पिछे
सुनाई देता बस लेहरों का स्वर
रंगीनियत है कुछ में बाकी
शायद जिवन के थपेडोंनें सताया है कम
The Journey Begins
Thanks for joining me!
Good company in a journey makes the way seem shorter. — Izaak Walton